‘’हमने जीप का इंजन बंद कर
दिया ...सर्च लाइट भी ...चारों ओर घुप्प अँधेरा ..झींगुरों की आवाजें ...जानवरों
की सरसराहटें और जंगल के सांस लेने की आवाजें ..जंगल की सांस कितनी साँसों से मिल
कर बनी होती है ..उस अँधेरे में उस घड़ी मुझे पहली बार महसूस हुआ .जीप में सारे लोग
जैसे दम साधे बैठे थे ..अपनी सांस को अपनी मुठ्ठी में दबाये ...ऊपर चमकते तारों से
भरा आसमान ...यह जंगल का आसमान है जो सिर्फ यहीं देखा जा सकता है ....
कहने को तो सब एक है पर धरती के हर टुकड़े का आसमान अलग जान पड़ता है ....मुझे इस वक्त लद्दाख का नीला आसमान याद आ रहा है .....सब कुछ हमारे आसपास पर कितना दूर ...हवा है जो जंगल की कभी गीली कभी सूखी महक को हमारे पास लाती है ...जो जंगल के सूखे या गीले हिस्से की खबर देती है ....जानवरों की मिली जुली गंध से लबरेज ...मनुष्य के शरीर के सूचना तंत्र की तरह जंगल का सूचना तंत्र भी बड़ा प्रभावी है .एक छोटी सी चिड़िया से लेकर बड़े से बायसन तक ...एक सूत्र में घूमते .’’
‘’अँधेरे में घोस्ट ट्री चमक रहा है ...उसकी सूनी नंगी-बेतरतीब टहनियां आसमान की ओर उठती हुई ...ये जिनको रास्ता दिखाता होगा ..क्या उनसे अपना भी रास्ता पूछ लेता होगा ?’’
‘’पशुओं की आँखों में जलते दीयों को देखती मै सोचने लगी ...क्या इस रौशनी में मैं एक कविता लिख सकती हूँ ..फिर मुझे हंसी आ गयी ...कविता तो हम अँधेरे में लिखते हैं ..पशुओं के रोंओं के घुप्प आदिम अँधेरों में ...’’
कहने को तो सब एक है पर धरती के हर टुकड़े का आसमान अलग जान पड़ता है ....मुझे इस वक्त लद्दाख का नीला आसमान याद आ रहा है .....सब कुछ हमारे आसपास पर कितना दूर ...हवा है जो जंगल की कभी गीली कभी सूखी महक को हमारे पास लाती है ...जो जंगल के सूखे या गीले हिस्से की खबर देती है ....जानवरों की मिली जुली गंध से लबरेज ...मनुष्य के शरीर के सूचना तंत्र की तरह जंगल का सूचना तंत्र भी बड़ा प्रभावी है .एक छोटी सी चिड़िया से लेकर बड़े से बायसन तक ...एक सूत्र में घूमते .’’
‘’अँधेरे में जंगल में खड़े
हम बायसन पर सर्च लाइट फेंकते हैं ..उनकी आँखें जलते लैम्पों सी इधर उधर घूमती हैं
....रौशनी की एक दीवार है हमारे बीच में ..इस दीवार के गिरने से हमें भय लगता है
..शायद उनको भी लगता हो .’’
‘’जंगल में नेटवर्क नहीं है
..हम मोबाइल हाथ में लिये मारे –मारे फिरते हैं कि किसी तरह किसी को अपने होने की
जगह बता दें .भीतर से यह जानते हुए भी कि किसी को न इसकी परवाह है न कोई जानना
चाहता है .हम डर भी रहे थे कि कहीं हमको न पता चल जाये कि हम कहाँ हैं ?’’
कुतुबनुमा
बारनवापरा अभयारण्य छत्तीसगढ़ में रायपुर के नजदीक स्थित है। महानदी यहाँ से करीब ही बहती है। आप यहाँ रायपुर से दिन की यात्रा पर जा सकते हैं। यदि रात में जंगल का मज़ा लेना हो तो आपको सरकारी रेस्ट हाउस में रुकना होगा। निकटतम रेल्वे स्टेशन महासमुंद पड़ता है।
‘’हम बोगन वेलिया की नीचे
खड़े होकर फोटो खिंचवा रहे हैं जबकि आसपास न जाने कितने सूखे वृक्ष पत्ते ,हरियाली
और टहनी विहीन खड़े हैं ..हम वहां नहीं जाते..हम एक दुसरे को इतना तन्हा देख नहीं
पा रहे .’’
‘’अँधेरे में घोस्ट ट्री चमक रहा है ...उसकी सूनी नंगी-बेतरतीब टहनियां आसमान की ओर उठती हुई ...ये जिनको रास्ता दिखाता होगा ..क्या उनसे अपना भी रास्ता पूछ लेता होगा ?’’
‘’पशुओं की आँखों में जलते दीयों को देखती मै सोचने लगी ...क्या इस रौशनी में मैं एक कविता लिख सकती हूँ ..फिर मुझे हंसी आ गयी ...कविता तो हम अँधेरे में लिखते हैं ..पशुओं के रोंओं के घुप्प आदिम अँधेरों में ...’’